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आपराधिक कानून

CrPC की धारा 144

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 28-Mar-2024

साइमन एवं अन्य बनाम राज्य

CrPC की धारा 144 के प्रावधानों के अधीन कोई निषेधात्मक आदेश नहीं होने पर सार्वजनिक रूप से एकत्रित होना और पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन करना अपराध नहीं माना जाएगा।”

न्यायमूर्ति एम. ढांडापानी

स्रोत: मद्रास हाई कोर्ट

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने साइमन एवं अन्य बनाम राज्य के मामले में माना है कि सार्वजनिक रूप से एकत्रित होना और पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन करना अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973(CrPC) की धारा 144 के प्रावधानों के अधीन कोई निषेधात्मक आदेश नहीं है।

साइमन एवं अन्य बनाम राज्य, मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अभियोजन पक्ष का मामला यह है कि वास्तविक शिकायतकर्त्ता, सुरेंतिराकुमार, जो ग्राम प्रशासनिक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं, ने प्रतिवादी पुलिस के समक्ष एक शिकायत दर्ज कराई थी जिसमें कहा गया था कि 10 अप्रैल, 2022 को प्रातः लगभग 11.30 बजे, याचिकाकर्त्ताओं में से एक सिलंबरासन ने पहली वर्षगाँठ का आयोजन किया था, जिसकी 07 अप्रैल, 2021 को पुलिस द्वारा पीछा करने और यातना देने के बाद मृत्यु हो गई।
  • उन्होंने एक निश्चित संख्या में लोगों को साथ लेकर प्रतिमा के सामने लगातार प्रदर्शन किया।
  • इससे व्यथित होकर, पहले प्रतिवादी पुलिस ने ग्राम प्रशासनिक अधिकारी से शिकायत प्राप्त की तथा याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के प्रावधानों के अधीन दण्डनीय अपराधों के लिये मामला दर्ज किया।
  • इसके बाद, याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध FIR को रद्द करने के लिये मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष एक दाण्डिक याचिका दायर की गई
  • उच्च न्यायालय ने याचिका मंज़ूर करते हुए FIR रद्द कर दी।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायमूर्ति एम. ढांडापानी ने कहा कि प्रासंगिक समय पर, आम जनता को किसी विशेष क्षेत्र में एकत्रित होने से रोकने वाला कोई निषेधात्मक आदेश नहीं है। CrPC की धारा 144 के अधीन निषेधाज्ञा के अभाव में, प्रतिमा के सामने कुछ लोगों को इकट्ठा करना तथा प्रतिवादी पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन करना अपराध कारित करना नहीं माना जाएगा।
  • आगे कहा गया कि जब CrPC की धारा 144 के अधीन कोई निषेधात्मक आदेश मौजूद नहीं है, तो कुछ लोगों के एकत्रित होने और पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन करने में किसी आपराधिक कृत्य नहीं किया गया, इसलिये यह कोई अपराध नहीं होगा।

CrPC की धारा 144 क्या है?

परिचय:

  • यह धारा न्यूसेंस या आशंकित खतरे के अत्यावश्यक मामलों में आदेश जारी करने की शक्ति से संबंधित है।
  • यह धारा भारत में किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के मजिस्ट्रेट को एक निर्दिष्ट क्षेत्र में चार या अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगाने का आदेश पारित करने का अधिकार देती है।
  • यह न्यूसेंस या आशंकित खतरे के तत्काल मामलों में लगाई जाती है जिसमें मानव जीवन या संपत्ति को परेशानी या क्षति पहुँचाने की क्षमता होती है।
  • यह आदेश किसी विशेष व्यक्ति के विरुद्ध, या किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में रहने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध, या आमतौर पर किसी विशेष स्थान या क्षेत्र में बार-बार आने या जाने पर जनता के विरुद्ध पारित किया जा सकता है

उद्देश्य:

  • धारा 144 का अंतिम उद्देश्य उन क्षेत्रों में शांति एवं व्यवस्था बनाए रखना है, जहाँ नियमित जीवन को बाधित करने के लिये समस्या हो सकती है।
  • यह विधिक रूप से नियोजित किसी भी व्यक्ति को बाधा, परेशानी या चोट, या मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा के लिये खतरा या सार्वजनिक शांति में गड़बड़ी, या दंगा, या झगड़े को रोकता है या रोकने की प्रवृत्ति रखता है।

आवश्यक तत्त्व:

  • यह दिये गए अधिकार क्षेत्र में किसी भी प्रकार के हथियार को संभालने या परिवहन करने पर प्रतिबंध लगाता है। ऐसे कृत्य के लिये अधिकतम सज़ा तीन वर्ष है।
  • इस धारा के अधीन,आदेश के अनुसार, जनता का कोई आवागमन नहीं होगा तथा सभी शैक्षणिक संस्थान भी बंद रहेंगे।
  • इसके अतिरिक्त, इस आदेश के लागू रहने की अवधि के दौरान किसी भी प्रकार की सार्वजनिक बैठक या रैलियाँ आयोजित करने पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा।
  • विधि प्रवर्तन एजेंसियों को किसी गैरकानूनी सभा को भंग करने से रोकना दण्डनीय अपराध माना जाता है।
  • यह अधिकारियों को क्षेत्र में इंटरनेट पहुँच को अवरुद्ध करने का भी अधिकार देता है।

अवधि:

  • इस धारा के अधीन कोई भी आदेश 2 माह से अधिक की अवधि तक लागू नहीं रह सकता है।
  • राज्य सरकार अपने विवेक के अनुसार, वैधता को अतिरिक्त दो माह के लिये बढ़ाने का विकल्प चुन सकती है, अधिकतम अवधि छः माह की अवधि तक बढ़ाई जा सकती है।
  • स्थिति सामान्य होने पर लागू की गई धारा 144 को हटाया जा सकता है।

निर्णयज विधि:

  • मधु लिमये बनाम सब-डिविज़नल मजिस्ट्रेट (1970) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 144 की संवैधानिकता को बरकरार रखा। न्यायालय ने कहा कि "विधि का दुरुपयोग किया जा सकता है" इसे रद्द करने का कोई कारण नहीं है। इसने आगे फैसला सुनाया कि इस धारा के माध्यम से लगाए गए प्रतिबंधों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।